Thursday, 10 January 2013

26 दिसम्बर ,2011
मैं  कश्मीर के एक ऐसे जगह पर था जो  L.O.C. के बेहद करीब है ।
अपने परिवार के साथ जब मैं  कश्मीर के खूबसूरत  नज़ारों का आनंद उठा रहा था ,ठीक उसी वक्त मैने  सड़क के किनारे,बन्दूक सम्हाले ,एक जवान  को बैठे देखा ।चेहरे से उदास दिख रहे उस जवान के मन में क्या चल रहा होगा यह तो मै नहीं बता सकता मगर इसकी कल्पना ज़रूर कर सकता हूँ ।इसी कल्पना की एक झलक  मैं अपनी एक कविता से देना चाहूँगा ।





आँगन तेरे लौट आऊँगा 

वादा तुझसे करता हूँ माँ ,
आँगन तेरे लौट आउँगा ।

जानता हूँ मुझ बिन तू माँ ,
गुमसुम गुपचुप रहती होगी ।
जानता हूँ खुद ही खुद में ,
मेरी बातें करती होगी ।
डरती होगी अन्दर अन्दर .
दूर कहीं मैं खो जाऊँगा ।
वादा तुझसे करता हूँ माँ ,
आँगन तेरे लौट आउँगा ।

 रोटी तेरी याद आती है ,
जब भी भोजन करता हूँ मैं ।
आँखे मेरी भर आती हैं ,
ख़त जो तेरी पढ़ता हूँ मैं ।
फिर ख़त से यह मैं पूछता हूँ ,
अगली ख़त क्या पढ़ पाउँगा ?
 वादा तुझसे करता हूँ माँ ,
आँगन तेरे लौट आउँगा ।

सोंचो जो चुपके से मैं घर पर ,
तुझसे मिलने को आ जाउँ ।
बावरी सी तू हो जाए ,
मैं भी धीरे से मुसकाऊँ । 
फिर मैं अपनी होश गँवा कर ,
सीने तेरे लिपट जाउँगा ।
वादा तुझसे करता हूँ माँ ,
आँगन तेरे लौट आउँगा ।

मिट गया जो देश की खातिर ,
दिल में तेरे सदा रहूँगा ।
बन कर खून मैं भारत का ,
नसों में तेरी बहा करूँगा ।
या फिर सपनों में रातों को ,
तुझसे मिलने आ जाऊँगा ।
 वादा तुझसे करता हूँ माँ ,
आँगन तेरे लौट आउँगा ।

                                --ऋषभ  प्रकाश 

3 comments:

  1. This is so beautiful. Tumhari kavitayen kitni saral hindi me hoti hain par unka bhav 'nason me khoon bankar' sama jata hai.
    I absolutely loved the last stanza; it really touched my heart :)

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  3. Yet another lovely creation Rishabh!! Very thoughtfully woven emotions with spectacular use of the language...keep up!!

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