Thursday, 25 July 2013

ये जिस्म है ,जिस्म तुम्हारा है |


छू कर खुद  को कर यकी तू ,
ये तू है ,जिस्म  तुम्हारा है|
झाँक ले खुद में ,देख कभी तू ,
तुझमे भी एक सितारा है|

खुद को अपना यार बना ले,
खुद से थोड़ा प्यार जता ले|
खुद पर कर के देख यकी तू ,
तू ही अब तेरा  सहारा है|

कदमो को अब रोक नहीं तू ,
उड़ने दे मन अब टोक नहीं तू |
बह जाने दे बस अब खुद को ,
तेरा ना कोई किनारा है|

छू कर खुद को कर यकी तू ,
ये तू है ,जिस्म  तुम्हारा है|

                                     -ऋषभ प्रकाश

2 comments:

  1. Wow. this is really and truly inspiring. I have a good mind to write it on a page and stick on the wall to remind myself that i DO matter. Thank you for writing this Rishabh. This is the dose needed to regain back that belief in oneself; what you have written is truly amazing :)

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  2. Thanks a lot Kirti..It really mean a lot to be judged by writers like you..Hope you will always comment on my posts and boost me up..:-)

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